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बच्चा फंस गया

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जैसे ही उसने मझे देखा वो एक क्षण अचानक रुक गया फिर एकदम जल्दी से बोल गया "आओ सर मसाज" वो उंगली से जिस तरफ इशारा कर रहा था वहाँ होटल के बेसमेंट में जाती सीढियां थी जिसपर पारदर्शी काँच का दरवाज़ा था लेकिन वो दरवाज़ा मसाज करवाते हुए महिलाओं और पुरुषों के चित्रों से ढका हुआ था। वह जिस संकोच और भावशून्य चेहरे के साथ रास्ते में आने-जाने वालों को टोक रहा था, उससे ये साफ पता चल रहा था कि ये लड़का यहाँ नया है और उसे ये काम भा नही रहा है। उम्र उसकी चौदह से सोलह साल रही होगी। दिल्ली का वह नही था अन्यथा वो इस जगह इस तरह नही होता। इसका कोई अंदाज़ा नही लगाया जा सकता कि वह कितना पढ़ा होगा। अगर वह पढ़ता ही तो यहाँ नही होता, पर इस बात का कोई दावा भी नही किया जा सकता। पता नही वो कौन सी परिस्थितियाँ रही होंगी जब उसे यूपी या बिहार से दिल्ली आना पड़ा होगा। ट्रेन की धुकधुकी के बीच ना जाने दिल्ली के कैसे-कैसे चित्र बने होंगे। पता नही उन चित्रों में इंडिया गेट के अलावा और कोई ईमारत बन भी पाई होगी या नही। इस सफ़र के बीच उसने कई सपने भी बुने होंगे, उन सपनों में उसके माँ-बाप की मौजूदगी रही होगी या नही ये