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उसकी कहानी

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पता नही उन दिनों वो क्या सोचता रहा होगा जब वो अस्पताल में भर्ती था।अब तक तो कभी सोचा भी नही होगा कि एक दिन इस तरह फूले हुए पैरों समेत वो अपने को सरकारी अस्पताल के उस खचाखच भरे वार्ड में पाएगा। भारी आँखों और बोझिल होती आवाज़ से कुछ कहने की नाक़ाम कोशिश करता हुआ वह कितना असहाय महसूस कर रहा होगा। वो ज़िन्दगी में कितना बेफिक्र था। पता नही उसे अपने बीवी बच्चों की कोई चिंता थी भी या नही। अस्पताल में भर्ती करने वाले फॉर्म में उसकी उम्र शायद सत्ताईस वर्ष चढ़ी होगी। शादी को अब लगभग तीन साल हो रहे होंगे। अब वो एक बच्चे का बाप भी है। लेकिन अब भी वो खुद को एक लड़का ही मानता है। पिछले पंद्रह अगस्त को किस तरह उसे चालाकी से हमारी पतंग ले ली थी। तब से उसकी तरफ देखने का मेरा नज़रिया एकाएक बदल गया। पड़ोसी तो वह था पर कभी ना तो मदद की और ना शायद मांगी। उसकी बारात सुबह-सुबह गई थी उस दिन बड़ा सुंदर लग रहा था। तब वो काम नही करता था हाँ कभी-कभी अपनी माँ की रेहड़ी पर खड़ा हो जाया करता था, गुटखा भी खाता था और शायद तब शराब भी पीता होगा। पता नही वो क्या परिस्थितियाँ रही होंगी जब उसकी शादी का फैंसला लिया गया होगा। हाला