संदेश

दिसंबर, 2021 की पोस्ट दिखाई जा रही हैं

उदास बातें

चित्र
किसी तिमिर में बैठकर मैं खिड़की से बाहर देख रहा था। बाहर रौशनी थी। मुझे लगा कि बाहर रौशनी है। रौशनी को देखना चाहिए। उसे छूना चाहिए। मैं उठकर बाहर जाता उससे पहले मैं बैठ चुका था। मैं बैठकर रौशनी को देख रहा था। और उसे छूने के बारे में सोच रहा था। मैं उठा और बाहर जाने लगा। बाहर रौशनी थी। मैं बाहर जाता कि पता चला चौखट आसमान से धरती की ओर आती है। उसका आकार मैंने पहली बार देखा। चौखट नें मुझे रोक लिया। मैंने रौशनी को देखा। मैनें रौशनी को छुआ नहीं। मैं रौशनी से डर गया। क्या मुझे रौशनी चाहिए? मेरा कमरा कबसे यही है। अंधा। मैं किस तरह अब तक इस अंधेरे में रह गया? यह उसका सवाल था। मैंने ये नहीं कहा कि यहाँ बत्ती नहीं आती। मैंने कोई ग़ैर रचनात्मक सा जवाब दे दिया। उसे अचम्भा हुआ। अब तक यहाँ तस्वीरें क्यों नहीं है। इस बात पर भी उसे अचम्भा होना था। लेकिन तस्वीरों के बारे में उसनें पूछा नहीं। मैनें भी उसे कुछ नहीं बताया। मैनें कहा नहीं कि क्यों तस्वीरें यहाँ नहीं हैं। क्या उसके उस सवाल से मुझे डर जाना चाहिए था? उसी तरह जैसे मैं रौशनी से डर रहा हूँ। ये संकोच नहीं है। कोरा डर है। इसका क्या करूँ? चौखट उभरती