स्वप्नभंग
भूल गया किस रात वह सपना आया था. सुबह उठा तो उसकी याद मन पर चादर की तरह फैल गई. देर तक बैठा रहा. सोचता रहा क्यों वह सपना आया मुझे? क्या मैं लगातार इस बारे में सोच रहा हूँ? क्या मैं सच में वह ख़ालीपन गहराई से महसूस करने लगा हूँ? मेरे मन में कोई स्थान ख़ाली है? जिस पर मैं किसी अधिकारी को बिठाना चाहता हूँ? कोई अधिकारी ही मेरा गुरु होगा! मैं किसी रेतीले परिवेश में हूँ. भूरा, संतरी और पीला यह परिवेश भारी है. मेरी देह और मन ख़ाली होने पर भी भारी हैं. मैं किसी रेगिस्तान में भटक रहा हूँ शायद. मैं अकेला हूँ. भयभीत नहीं हूँ. लेकिन कमज़ोर हूँ. मेरी पीठ झुकी हुई है. मैं चलते-चलते झुकता गया हूँ. और अकेला होता गया हूँ. अगले क्षण मैं किसी ईमारत के भीतर हूँ. इस ईमारत में अन्धेरा है. बायीं ओर एक चौखट है. उसपर लगे दरवाज़े खुले हुए हैं. दाईं ओर मेरे ही क़द का एक व्यक्ति सीधा खड़ा है. उसके लहरिया बाल कानों और कन्धों तक पहुँच रहे हैं. इस व्यक्ति की हर गति जैसे तालबद्ध है. हर बात जैसे किसी सम पर जाकर रुकती है. तेते कट गड़ी गाना धा , तेते कट गड़ी गाना धा , तेते कट गड़ी गाना धा! उसका चेह...