तुम्हारी मेरी बातें

क्या शाम थी न वो। साथ वाले कॉलेज में शंकर महादेवन गा रहे थे। हल्की-हल्की ठंडी थी हवा। मुझे आज अचानक वो दिन याद आ गया। उस वक़्त मैं जो महसूस कर रहा था, अब कभी नही कर पाउँगा। चाह कर भी नही। तब हम इतने बड़े नही हुए थे। समय इतना बंधा हुआ नही था। हम जितनी देर चाहें कॉलेज में बैठे रह सकते थे। अब वैसा नही होगा। न तुम्हे समय है ना मुझे। अब तुम्हे मुम्बई भी तो जाना है। तब तो तुम दो साल तक पता नही मिल भी पाओगी या नही। फिर हमारा मिलना भी मुसलसल कम होता रहेगा। किसी और दिन भी उस दिन को याद करके मेरी आँखें भर आएंगी। अब हम वैसे बातें नही कर पाएंगे जैसे तब किया करते थे। लाख संकोच होने पर भी मैंने इतनी लंबी-लंबी बातें की थी। बातों के अलावा और क्या होता है जो रह जाता है। हम रहें ना रहें वो बातें गूंजती रहेंगी वहीं हमेशा। जब भी फिर मैं वहां जाऊँगा वो मेरे अंदर भर जाएंगी। मेरे अंदर भी वो गूंजेंगी। मुझे पता है आजकल मैं बदला-बदला सा लगता हूँ। फिर मिलना कभी तुम्हारे पास समय हो तो, बहुत सी बातें जमा है।
देवेश, 9 अक्टूबर 2016

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