एक अधूरी प्रेमकथा

अभी कुछ कह देने की बेचैनी नही है, मन कुछ अजीब सा हो रहा है। बस उसकी याद आ रही है। आज से दो साल दो दिन पहले उसने ज़हर खाया था। जब उसका पहली बार नाम सुना था तब से अब तक मैं उसको एक भी बार नही मिला। बस उसकी कुछ तस्वीरें देखी थीं और एक बार फ़ोन पर बात की थी। उसका चेहरा जाना पहचान सा था, हमारी रिश्तेदारी में एक लड़की है राधा, पूजा बिलकुल उसकी तरह दिखती थी। पर वो राधा के बिलकुल उलट थी। उसे घर में रहना पसंद था। धर्म-कर्म में भी मन लगता था। पढ़ना उसके लिए सिर्फ एक मजबूरी थी, या कहें शादी तक की उसकी यात्रा का रास्ता, उसे रास्ते से ज़्यादा मंजिल पसंद थी। जीन्स टॉप से घृणा उसकी चारित्रिक विशेषता थी। अपने गुणों और विचारों में पुरुषवादी समाज उसके लिए एकदम अनुकूल था। उसके व्यक्तित्व को इस तरह गढ़ने में परिवार की भूमिका ज़्यादा रही या फिर उसके पहले और अंतिम प्यार की, पता नही, पर दोनों ने मिलकर उसे ऐसा बना दिया था। उसके प्रेमी के संस्कार भी पूजा से बढ़कर होने ही थे, उसे भी जीन्स वाली लड़कियाँ देखने में भले ही आकर्षक लगती हों पर उसे अपनी बेग़म बनाना उसे क़तई मंजूर न था। 
                            दोनों स्कूल से लौटते हुए कभी आँखों-आँखों में एक दूसरे से कुछ बतला भले ही लें लेकिन इसे लेकर वो इतने सतर्क रहते की किसी को कानोंकान ख़बर ना पड़े। प्रेम एक तरफ तो कोमलता देता है लेकिन एक का प्रेम बाकियों को शूल की तरह चुभता भी है गांव तो दूर की बात है शहरों में भी यही हाल है, मजाल है कि कोई ज़रा भी भटकने पाए। फिर भी ये दोनों कहीं ना कहीं से मिलने की जुगत लगा ही लेते थे। यूसुफ़ ने पूजा को एक फ़ोन भी दिया था जिसे वो अपने स्कूल बैग में छुपाए रखती थी और एक बार पकड़े जाने पर जबरदस्त तरीक़े से पिटी भी थी। वे घंटों फ़ोन पर बात नही करते थे और न ही साथ कहीं घूम पाते थे पर हमेशा एक दूसरे के ख़यालों में खोए रहते थे। दोनों की कल्पनाओं में उनका एक घर रोज़ बन जाया करता था जिसमें ये दोनों शाम का खाना साथ खा रहे होते थे, इसी कल्पना की तरह यूसुफ़ को पसंद था अज़ान होते ही पूजा का अपना सर ढक लेना।
                            यूसुफ़ कभी भागकर शादी नही करना चाहता था, लेकिन वक़्त ने उसे मजबूर कर दिया। एक ओर नई दिल्ली स्टेशन से उसने हर तरफ की ट्रेन की जानकारी इकट्ठा कर ली, वहीं दूसरी तरफ उसके एक दोस्त ने एक वक़ील से भी उसकी बात करा दी। सब इतना जल्दी हो रहा था कि यूसुफ़ कुछ समझ ही नही पा रहा था कि क्या करे। घंटों सोच-सोचकर उसका सर फटा जा रहा था, पर हाथ कुछ लग ही नही रहा था। यूसुफ़ के घर वाले तो पूजा से शादी के लिए राज़ी हो गए लेकिन पूजा की माँ को सब जानकारी होते हुए भी वो कुछ बोली नही। यूसुफ़ बार-बार उनके आगे गिड़गिड़ाता रहा, वह भी हाँ-ना करके टालती रहीं। उन्होंने पूजा के पापा को कुछ बताया नही। क्योंकि वो जानती थीं कि अगर उन्होंने ये बात पूजा के पापा को बताई तो वो उसे मार ही डालेंगे।
                         आठ साल दोनो के प्रेम संबंध को हो चुके थे, दोनों ही पीछे हटना नही चाहते थे। पूजा का शादी जल्दबाज़ी में तय हुई, हफ्ते भर बाद का ही दिन शादी के लिए तय कर लिया गया। यूसुफ़ की जान पर बन आई, वो ऐसा होते हुए देख ही नही सकता था। सारे इंतज़ाम वो पहले ही कर चुका था। लेकिन उसके हाथ में कुछ आ ही नही रहा था। पूजा ने यूसुफ़ से आख़री बार कोई बात नही की। बीतता हुआ हर लम्हा यूसुफ़ को और बेचैन कर रहा था साथ ही पूजा से बात ना हो पाने का दुख भी उसकी बेचैनी को और बढ़ा रहा था। यहाँ पूजा की उस सहेली ने भी यूसुफ़ का साथ देने से मना कर दिया जो दोनों की बातें एक-दूसरे तक पहुँचाया करती थी। देखते ही देखते पूजा की शादी का दिन आगया।
                           उस दिन सुबह जल्दी ही यूसुफ़ घर से निकल गया। पर कहीं गया नही। यहीं सदर बाज़ार की गलियों में भटकता रहा। फ़ोन पर फ़ोन करने का भी कोई फायदा नही होता। पूजा वो फ़ोन बन्द कर चुकी थी। अब उसके पास कुछ नही था। वो एकदम ख़ाली हो गया था। जो डर उसके मन में कई सालों से बना हुआ था वही आज सच हो गया। पूजा अब उसकी नही हुई। वो एकदम चुप हो गया, कुछ बोला नही, दोस्तों से भी नही। शाम को घर पहुँचा तब पूजा की सहेली ने बताया कि पूजा ने ज़हर पी लिया।
                          आज यूसुफ़ को नही पता पूजा कहाँ है। वो नही जानता कि उसकी शादी हुई या नही। उसे बस इतना ही पता चला कि पूजा ने ज़हर पिया था। लेकिन उस दिन शादी भी हुई थी, वो कौन थी जो फेरों पर बैठी थी? मुझे भी नही पता आज पूजा ज़िंदा है या नही, मैं बस इतना जानता हूँ कि कभी यूसुफ़ उसे बहुत प्यार करता था, शायद आज भी करता हो। लेकिन अब कभी पूजा का कोई ज़िक्र यूसुफ़ की ज़बान पर नही आता। उसकी सहेली भी सारे राज़ अपने सीने में जमाए बैठी है। वो भी अब यूसुफ़ को मिलती नही। सब अचानक से बंद हो गया एक दरवाज़े की तरह। पर अब भी कभी मुझे फ़ोन पर पूजा से की गई वो बातें याद आजाती है तो लगता है कल ही कि बात है। मुझे एक बार तो उससे मिलना ही चाहिए था क्योंकि वो यूसुफ़ की प्रेमिका थी और यूसुफ़ मेरा पात्र।

देवेश, 23 नवम्बर 2017

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