वे दोनों

ये पहली मंज़िल है। बाहर कड़ी धूप है। इस कमरे में केवल हम नहीं बैठे। हम लड़के-लड़कियों के अलावा एक युगल भी बैठा है। हम लड़के और लड़कियाँ ना चाहते हुए भी किसी न किसी बहाने से अचानक उन्हें देख लेने की इच्छा से भरे हुए हैं। वो दोनों बहुत धीमें से आपस में बात कर रहे हैं। वो नही चाहते कि कोई उनकी एक भी बात सुने। वो अपने अलग टापू पर हैं। वो अपनी इस दुनिया को अपनी पीठ से ढक लेना चाहते हैं। हम अपनी इस दुनिया से उन्हें देख रहे हैं। उन्हें इस तरह एक-दूसरे का हाथ पकड़े देखकर हम सभी कोई प्रतिक्रिया नही दे रहे। हम सब बातों में लगे हैं यही हमारी प्रतिक्रिया है। हम सभी लड़के-लड़कियाँ उन दोनों की ही तरह बैठ जाना चाहते हैं। इस बात से जो इनकार कर रहा है वह झूठा है। 

वे लड़का और लड़की दोनी ही यहाँ से अनुपस्थित है। वो इस समय से टूट गए हैं उनकी स्मृति में रह गए हैं एक दूसरे के कंधे, हाथ और होंठ। मैं ये बार-बार कहता हूँ कि प्रेम तोड़ता भी है। ये टूटना ही अनुपस्थित होना है कई आयोजनों से, रिश्तों से, यादों और बातों से। उन दोनों की ही तरह यहाँ बैठे हम सब भी कंधे, हाथ और होंठ हो जाना चाहते हैं इनके अलावा और बहुत कुछ भी जिसे मैं यहाँ लिखना नही चाहता।

ये कमरा एक कक्षा है। मेरे दिमाग़ में उनका इस कमरे में इस तरह बैठना बार-बार खटक रहा है। मैं कल्पना कर रहा हूँ कि मैं उठकर उनके पास जाता हूँ और भौहें तानकर कहता हूँ आप इधर इस तरह नही बैठ सकते। मेरे इतना कहते ही वे दोनों भावहीन चेहरा लिए वहाँ से चले जाते हैं। इस घटना के बाद मेरी कल्पना मर गई है। मैं उन दोनों को इस कक्षा के बाहर कहीं भी कल्पित नही कर पा रहा हूँ। मैं कोशिश करता हूँ कि सोचूँ कि वो एक दूसरे का हाथ पकड़े एक बड़े से पार्क में घूम रहे हैं। पर मेरी कल्पना से वे दोनों जा चुके हैं केवल रह गया है एक खाली सूना पार्क।

उस दिन के बाद से वो दोनों मुझे कहीं नही दीखते। ना यहाँ ना कहीं और। इसका मतलब ये नही कि वो मर गए। वो बस मेरी स्मृति में चिपके रह गए हैं। उनके हज़ार चहरे मेरे अंधेरे दिमाग़ में साबुन के बुलबुलों की तरह हवाओं में डोलते और फूटते रहते हैं। उनके टूटे हुए हाथ, कटे हुए होंठ भी सेमर की रूई की तरह उड़ते नज़र आते हैं। अब मुझे उनकी ज़्यादा याद आने लगी है। मैं सोचता हूँ कि कभी कमला नगर घूमते हुए वो अचानक किसी दुकान पर दिखाई दे जाएंगे। वो दोनों तब भी दुनिया से पीठ करे रहेंगे। उन्हें यूँ देख लेने की कल्पना करते हुए भी उनके चित्र नही बन पा रहे हैं। सब रंग घुल रहे हैं। कुछ समझ नही आ रहा क्या हो रहा है। वो नही दिख रहे। उनकी कल्पना भी मुझसे नही हो रही। कोई चित्र भी नही बन रहा। 

लेकिन अब मुझे कानों में धीरे-धीरे उनकी फुसफुसाती सी आवाज़ सुनाई दे रही है। वो आपस में बात कर रहे हैं। वो कोई गाना गा रहे हैं। वो हँस रहे हैं। 

देवेश, 1 मई 2018

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