पागलपन

यहाँ पास में ही स्टेशन है। सुबह शाम ट्रेनों के भोंपू की आवाज़ आती है। सर्दियों में तो सूचना देने वाली लड़की की आवाज़ भी ठीक-ठीक सुनी जा सकती है। साल भर में लाखों लोग सफ़र करते हैं यहाँ से। विश्व भर के लोग रहते हैं दिल्ली में उनका आना-जाना तो लगा ही रहता है। यहाँ आते-जाते कितने ही लोग अपने परिवार से बिछड़ जाते हैं। कुछ भटक जाते हैं, कुछ उठा लिए जाते है। जिन्हें कुछ समझ होती है और पैसा हाथ होता है वो अपने घर-द्वार पहुँच जाते हैं लेकिन जिनपर कोई सूत्र नही होता वो यहीं छूट जाते है। उनमें से कई यहीं आसपास काम पर लग जाते हैं ख़ासकर बच्चे और बूढ़े। जो लोग परिवार से बिछड़ने का सदमा बर्दाश्त नही कर पाते वो धीरे-धीरे भ्रमित होने लगते हैं। उनकी चुप्पी उनके दिमाग़ पर हावी होने लगती है। एक स्थिति ऐसी आती है जब वे पागल हो जाते हैं। तब इनकी चुप्पी एक निरर्थक बातों में तबदील हो जाती है। वे लगातार किसी अदृश्य से बातें करते हैं। एक सामान्य व्यक्ति के लिए ये एक असामान्य स्थिति है। ये भूल जाते हैं अपनी पहचान, इनके पास केवल दो चीज़ें होती है इनकी बातें और इनका पेट। इन्हें कोई चिकित्सीय सहायता भी नही मिलती। ये घू...