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  उस वक़्त मुझे लगा मैं राग भैरव में भीगा हुआ हूँ. समुद्र में मेरे पैर हैं. मैं सूरज को ऊपर खींच रहा हूँ. जबकि ऐसा कुछ नहीं था.   1. ये दिन भी ऐसे ही बीतने थे. निरुद्देश्य. तय दिनचर्या और वेतन के बिना. मैं या तो घर बैठा था या कहीं भटक रहा था. सब चीज़ों में संगति बनाने की कोशिश में मैं ख़ुद टूट रहा था. जीवन के तमाम निर्णय ग़लत लिए जाने के बाद भी दूसरों की दी ज़रा सी रौशनी में अन्धकार को देख रहा था. मुझे आगे कुछ नहीं दिखता था. उन्हें दिखता रहा होगा. तभी रास्ता बताते थे वे. उन्होंने मुझसे ज़्यादा दुनिया देखी थी. लेकिन वे ये नहीं जानते थे कि हम दोनों की दुनिया अलग-अलग है. उनके अंदाज़े मुझपर उलटे पड़ सकते थे. पड़े भी. 2. मैं जीवन के दस साल लगाकर उस कला में माहिर हुआ जिसकी किसी को ज़रूरत नहीं थी. जिसमें रोटी कमाना मुश्किल था. वह कला अपने आप में इतनी अकेली थी कि उसे इधर-उधर की बैसाखियों की ज़रूरत हमेशा रहती. मैंने इस कला के कलाकारों का सम्मान किया. लेकिन समझा नहीं वे क्या करते हैं और कैसे करते हैं. मैंने उन्हें दूर से देखा था. इसलिए उन सबका सम्मान करता था मैं. फिर कई युक्तियों से मैंने ...

स्वप्नभंग

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    भूल गया किस रात वह सपना आया था. सुबह उठा तो उसकी याद मन पर चादर की तरह फैल गई. देर तक बैठा रहा. सोचता रहा क्यों वह सपना आया मुझे? क्या मैं लगातार इस बारे में सोच रहा हूँ? क्या मैं सच में वह ख़ालीपन गहराई से महसूस करने लगा हूँ? मेरे मन में कोई स्थान ख़ाली है? जिस पर मैं किसी अधिकारी को बिठाना चाहता हूँ? कोई अधिकारी ही मेरा गुरु होगा! मैं किसी रेतीले परिवेश में हूँ. भूरा, संतरी और पीला यह परिवेश भारी है. मेरी देह और मन ख़ाली होने पर भी भारी हैं. मैं किसी रेगिस्तान में भटक रहा हूँ शायद. मैं अकेला हूँ. भयभीत नहीं हूँ. लेकिन कमज़ोर हूँ. मेरी पीठ झुकी हुई है. मैं चलते-चलते झुकता गया हूँ. और अकेला होता गया हूँ. अगले क्षण मैं किसी ईमारत के भीतर हूँ. इस ईमारत में अन्धेरा है. बायीं ओर एक चौखट है. उसपर लगे दरवाज़े खुले हुए हैं. दाईं ओर मेरे ही क़द का एक व्यक्ति सीधा खड़ा है. उसके लहरिया बाल कानों और कन्धों तक पहुँच रहे हैं. इस व्यक्ति की हर गति जैसे तालबद्ध है. हर बात जैसे किसी सम पर जाकर रुकती है. तेते कट गड़ी गाना धा   , तेते कट गड़ी गाना धा   , तेते कट गड़ी गाना धा! उसका चेह...

दोस्तियाँ

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दोस्ती होने के लिए न जाने क्या है जिसका होना ज़रूरी है. आज तक जान नहीं पाया. जो दोस्त बने वे बस बन गए. जो नहीं बने वे फिर कभी नहीं बने. उसके लिए किसी वजह की ज़रूरत नहीं थी. 1. एक वक़्त सोचा करते थे कि हम जीवन में आगे भले ही बढ़ें पर साथ बने रहेंगे. इसी तरह मिलते रहेंगे. बातें करते रहेंगे. एक चाय ख़त्म हो जाने पर दूसरी मंगाते रहेंगे. एक दिन आएगा जब बीते दिनों को याद करेंगे. चश्मे उतारेंगे, पोंछेंगे, दोबारा लगाएंगे, बीते किस्से दोहराएंगे और ठहाके लगाएंगे. मेरी कल्पना में तो ये सब इतना साफ़ है कि सबके कपड़ों के रंग तक पहचान रहा हूँ. 2. अतीत में भविष्य शनील के कपड़े सा मुलायम लगा करता था. उसकी दूसरी तह को हम कभी छू नहीं पाए थे. हम किन्हीं गुलाबी सपनों में डूबते उतराते रहते थे. सब बहुत हल्का लगता था. सब चिंतामुक्त. अगर कोई चिंता थी तो उसका निवारण भी था. निवारण अपने पास नहीं था तो दोस्त थे. अपनी कुछ चिंताएँ उनके सर भी डाली जा सकती थी. वह वक़्त बहुत जल्दी गुज़र गया. हमारी उम्र बढती गई. चिंताएँ भी. जो नहीं बढ़े वे थे दोस्त. 3. एक वक़्त मुझे ऐसा महसूस होता था कि मेरे इतने दोस्त है, अगर रोज़ एक दोस्त ...