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इन दिनों : अगस्त तेईस

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अगस्त की धूप-छाँव गई, छत गई, हवा गई, नीम गया, पड़ोसी गए, दोस्त गए, मन गया अब क्या बचा है यहाँ? जो किताबें जमा की हैं वे किस काम आएंगी मेरे? उन्हें एक दिन इकठ्ठा कर फूँक दूंगा. भीतर जो बचा रहेगा उसे भुला दूंगा. उसे याद रखकर करूँगा भी क्या? इन पाँच सालों में क्या बदल गया? सबकुछ और कुछ भी नहीं. मैं अभी भी यहीं हूँ. यहीं बैठा हूँ और सामने के अन्धकार को देख रहा हूँ. इसे अन्धकार न भी कहूँ तो यह घना धुंधलका है. इसके पार देखा नहीं जा पा रहा. मन में चित्र बनते और बिखरते हैं. जीवन की योजनाएँ बनती हैं और टूट जाती हैं. मैं इन्हें बनता-टूटता देखता हूँ और एक गाढ़े मौन की रचना करता हूँ. हर शाम मैं मौन के स्थान पर आपाधापी को चुनता हूँ और कुछ देर उस मौन को खो देता हूँ. रात अपने में लौट आता हूँ. और फिर शाम तक अपने साथ बना रहता हूँ. यही इन दिनों दिनचर्या है. मैं इसे जल्दी ही तोड़ देना चाहता हूँ. मैं इस वक़्त नौकरी कर रहा होता तो इस वक़्त लिख नहीं रहा होता. इसका मतलब है कि मैं लिख रहा हूँ, क्योंकि मैं नौकरी नहीं कर रहा. जितने साक्षात्कार मैंने दिए नहीं उससे अधिक छोड़ चुका हूँ. मैं उनकी भाषा नहीं बोलता. वे मेरी....

इन दिनों : अगस्त अट्ठारह

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अगस्त मेरे लिए कभी ऐसा नही रहा जैसा आज है। अगस्त महीने की याद से मुझे हमेशा दो चीजें सूझतीं हैं। सुबह की खिली-खिली धूप और रक्षाबंधन का त्यौहार। तब छत पर सोने से सुबह जल्दी आँख खुल जाया करती। सरसराती सी हवा मक्खियों को ज़रा भी चैन लेने नही देती। मैं सीढियां उतरकर आख़िरी सीढ़ी पर बैठ जाता और सामने दीवार पर पड़ने वाली धूप को देखता रहता। रक्षाबंधन वाले दिन सुबह से ही भुआओं का इंतज़ार होता रहता। वे आतीं और ज़ोर से हमारा नाम पुकारतीं। हम भागे-भागे सीढियां उतरते और उनसे चिपट जाते। नीचे दरवाज़े के बाहर सभी की चप्पलें बेतरतीब पड़ी रहतीं। मुझे दरवाज़े के बाहर इतनी सारी चप्पलें बड़ी अच्छी लगतीं, आज भी लगती हैं। मैं अपने पैर के अंगूठे और उंगलियों से उन्हें करीने से लगा देता। बुआ की चप्पल मुझे बहुत अच्छी लगती, ज़मीन से दो इंच ऊपर उठी हुई। उनकी साड़ी जैसी चमकीली। राखी बांधने के बाद शाम तक ठहाकों के कई दौर चलाने के बाद वे अपने-अपने घर वापस लौट जातीं। वो जब तक रहतीं घर गुलज़ार रहता। उनके लौटते ही एकदम सन्नाटा हो जाता। अब भी सबकुछ लगभग ऐसा ही होता है। पर अब हम बड़े हो गए हैं।  पिछले लगभग सभी अगस्त सितम्ब...