फैसले की घड़ी में

कभी सोचा नही था कि मेरी ज़िन्दगी में भी एक ऐसा समय आएगा जब खुद को इतना उलझा हुआ पाउँगा। बचपन में किसी विषय की गहराई का पता नही होता, तब सब एक खेल जैसा लगता है। तब लगता था की काश बिना पढ़े ही मैं बड़ा हो जाऊं। मोटी-मोटी किताबें देखकर तब भय होता था। आज जब मैं ग्रेजुएट हो चुका हूँ तो एकाएक भविष्य जैसे धुंधला गया है। अभी कुछ समय पहले तक सब स्पष्ट था। अब सारी चीजें एक दूसरे में घुल रही है, सारे विचार, योजनाएं, दावे, आशाएँ, संभावनाएं। अब जैसे सारी योजनाओं के आगे एक बड़ा प्रश्नचिन्ह लग गया है। इसका उत्तर मुझसे बनता ही नही। मैं क्या करूँ? इस सब में मैं खुद को अकेला महसूस नही कर रहा, मेरे साथ एक पूरी पीढ़ी है जो अभी इसी वक़्त इन्ही सवालों से जूझ रही है। इस सब से पार पाना जितना कठिन है उतना आसान भी।

सभी हमें कह देते हैं कि ये रास्ता सही है, ये गलत, इसमें ज़्यादा कठिनाई होगी या ये रास्ता ज़्यादा बेहतर रहेगा। उन सभी के सुझाए रास्तों पर चलने को हम तैयार भी हो जाएं तो। क्या हम चल भी पाएंगे? कहीं ऐसा तो नही की हम वो रास्ता कभी चुनना ही न चाहें। किसी सेमीनार में किसी ने कहा था कि सबसे पहले ये जानो की आप चाहते क्या हो, फिर अपना रास्ता चुनो। लेकिन सबसे बड़ी समस्या तो यही है कि हम असल में चाहते क्या हैं ये हम जानते ही नही। ये जानने की प्रक्रिया भी हमें नही पता। हमारा मन हर पल बदलता रहता है। चुनना अपने आप में एक समस्या है ऊपर से अपनी रूचि से अनभिज्ञता...। कुल मिलाकर सबकुछ अनिश्चित। इसके साथ की एक चीज़ है असफलता का भय। जब आप मंज़िल से अनजान हो तो आप में वह आत्मविश्वास भी नही आ पाता। इस पड़ाव पर जो डर हमें घेरे रहता है वह असफलता का भय ही है। हमें डर लगता है गलत फैसलों से। मुझसे कहा भी गया की अगर फैसला गलत भी हो गया तो ज़िन्दगी ख़त्म थोड़े ही हो जाएगी। पर मुझे पता है की अगर मेरा एक फैसला गलत हुआ तो एक वर्ष बर्बाद हो जाएगा जिसकी भरपाई बड़ी मुश्किल होगी।

ग्रेजुएट बेरोज़गार यदि घर में रहे तो भला किसे भाएगा? पर अगर नौकरी हो गई तो क्या मैं फिर से पढ़ाई की और लौट पाउँगा? इसके बारे में कुछ कहते नही बन रहा। माँ का कहना है कि उस दौरान वो मुझे कम्प्यूटर का कोई कोर्स कराएंगी। कभी लेक्चरर बनने की बातें मैंने कही थी आज दिल्ली विश्वविद्यालय का हाल देखकर सब बातें ख़त्म कर दी, अब तो शिक्षक भी हमें मना करने लगे हैं। फॉर्म भर दिए गए हैं, प्रवेश परीक्षाएं हो चुकी हैं, अब बस परिणाम मिलना बाकी है। ये हफ्ता निर्णय लेने का है। निर्णय क्या होगा अभी कुछ पता नही। अभी सब कुछ घूम रहा है। अंदर, बाहर, ऊपर, नीचे। शायद आगे कभी उस फैसले की एक प्रति एक और किश्त के रूप में आपके सामने आ जाए।

(देवेश 8 जुलाई 2016)

टिप्पणियाँ

  1. अच्छा लिखा है देवेश। इन दिनों को लिखते रहो। और लिखो .और जनसत्ता भेजो थोड़े उदाहरणों लिखो। शुभकामनाएं

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