बेचैनी का कवि

आज उनका जन्मदिन है। आज वो पूरे सौ बरस के हो जाते। उम्र बहुत अधिक नही थी जब वे गुज़र गए। उनका जाना दिखने में बिल्कुल एक सामान्य इनसान के जाने जैसा ही था। तब उन्हें इतना कोई जानता भी नही था, और जो जानते भी थे उनमें से अधिकतर को उनकी कोई परवाह भी नही थी। पर सब ये जानते थे कि ये जो बीमार बिस्तर पर पड़ा है ये कवि भी है। सब ये मानते थे कि ये जो कविताएं करता है वो किसी को समझ नही आती इसलिए ना पढ़ने से कोई नुकसान नही। 
                        ये व्यक्ति जो बिस्तर पर लेटा हुआ था इसे इन सब बातों से कोई फर्क नही पड़ा, वह लिखता रहा अपनी तरह से और उलझता रहा उन सब बातों में जिन बातों से किसी को कोई फर्क नही पड़ता। अब इन्हें मर जाने का भी कोई ग़म नही, जिन बेचैनियों में ये तड़पे वह सब ये कह चुके हैं। जो मर गया वह केवल शरीर था कवि मरा नही, ये कवि मरेगा नही। इस कवि ने रोशनियों के बजाए अंधेरे को बुनना चुना। इन्होंने चुना धरती की खोहों में दुबके रहस्य के उजागर को। असली और नकली के भेद के पार इन दोनों को मिलाकर इन्होंने एक अलग संसार रचा जिसमें छायावाद जैसा रहस्यवाद भले ही लगे लेकिन वैसी कोमलता कतई नही है। जितना उबड़-खाबड़ इन्होंने देखा-सहा इतना ही खुरदुरा कहा भी। 
                        मैं हमेशा इनकी उम्र का अंदाज़ा लगता था और सोचता था कि शायद इन्हें कभी देख पाता, निराला के बारे में भी मैं यही सोचता हूँ, लेकिन मैं जानता हूँ कि मैं देख भी लेता तो कोई बड़ी घटना नही होती। तब बस 'छायास्मृति' जैसा ही कुछ लिख दिया होता। कवि कैसा है ये हमें कवि को मिलकर कभी पता नही चल सकता, कवि कि गहराई का रास्ता केवल उसकी कविता से होकर जाता है। और कवि मौलिक रूप से केवल अपनी कविता में ही बच पाता है। लेकिन ये अच्छी बात है कि इस कवि को हमनें कम से कम मरने से पहले पहचान लिया और ये माना कि ये बड़ा कवि है। जिनपर ठप्पा नही लग पाता उनकी बात यहाँ करना अप्रासंगिक होगा
                      जन्मदिवस पर मृत्यु को याद करना पता नही ठीक है या नही पर इसे ऐसे ही कहा जाना था। ये समय भी मृत्यु से कम नही। इस समय में ज़रूरी है कि हम मुक्तिबोध की कविताओं को पढ़े और महसूस करें कि हम अभी भी मरे नही हैं। एक बेचैन करने वाला कवि यहाँ तक बेचैन कर देने वाला कि कोई लड़का उनकी किताबों को अपने कमरे से बाहर कर दे, सदियों में एक होता है। मुक्ति के लिए छटपटाहट को बढ़ा देने वाले कवि मुक्तिबोध को नमन।

देवेश, 13 नवम्बर 2017

टिप्पणियाँ

  1. मुक्तिबोध की क़ीमती याद दिलाने के लिये शुक्रिया देवेश।

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  2. श्रद्धेय डा० कंवल नयन कपुर ने मुक्तिबोध जी की कविता "अंधेरे में" की 'रंग प्रस्तुति' का सौभाग्य दिया। नाट्य रचना में चार मास का समय लगा औरमंचन बहुत सफल हुआ यह अलग संसारिक बात है।
    मेवरे लिए वो सबसे महत्वपूर्ण कक्षा थी जिसमे मैने समझा कि साहित्य पाठन का प्रथम नियम यह है कि आप अपने निजि ज्ञान को खूँटी पर लटका दें तभी आप रचनाकार के आश्य की राह पकड़ पाते हैं।
    वो है और सदा रहेंगे।........शत-शत नमन।।

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