ज़िन्दगी में

तस्वीरों को हम जितना देख कर समझ पाते हैं उतना महसूस नही करते। हम बस देखते हैं उतना जितना दिख रहा होता है। तस्वीरों के पीछे की कहानी हमें कभी पता नही चलती। अगर कोई हमें बता दे की उस दिन फलाने की शादी में चच्चा आखिरी बार तस्वीर में कैद हुए थे, जब रमेश ने चाची के साथ उनकी फ़ोटो खेंचने को कहा तो चाची शरमा गईं थी। चच्चा को भी नही पता था की इसी तस्वीर को कभी उनका पोता दिवाली की सफाई करते-करते कूड़ेदान में सरका देगा। उस शादी में ना जाने कितनी तस्वीरें निकाली गई होंगी। आज उन तस्वीरों में दिखने वाले आधे लोग गुज़र चुके हैं। वीडियो में नाचती लड़कियाँ अब तीन-तीन बच्चों की माँ बन चुकी हैं। उनके घुटने अब दुखने लगे हैं। 

ज़िन्दगी एक तस्वीर की तरह नही होती, एल्बम की तरह होती है। लेकिन ज़िन्दगी को होना चाहिए शादी वाले घर की तरह, जहां हँसी-मज़ाक, मनमुटाव, लड़ाई-झगड़ा, शोर-शराबा सब होता है। इन सभी की आवाज़ तस्वीरों में होती है बस सुनने के लिए कान चाहिए होते हैं। मैं ये दावा नही करता कि वो कान मेरे पास हैं। पर होने चाहिए। वो कान उगाने पड़ेंगे। समय पर उग भी जाएंगे। तुम जानो तुम्हारे पास वो कान और आँखें हैं कि नही।

देवेश, 14 नवम्बर 2016

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